वांछित मन्त्र चुनें

दे॒वा दैव्या॒ होता॑रा दे॒वमिन्द्र॑मवर्द्धताम्। ह॒ताघ॑शꣳसा॒वाभा॑र्ष्टां॒ वसु॒ वार्या॑णि॒ यज॑मानाय शिक्षि॒तौ व॑सु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य वीतां॒ यज॑ ॥१७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वा। दैव्या॑। होता॑रा। दे॒वम्। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्द्ध॒ता॒म्। ह॒ताघ॑शꣳसा॒विति॑ ह॒तऽअ॑घशꣳसौ। आ। अ॒भा॒र्ष्टा॒म्। वसु॑। वार्या॑णि। यज॑मानाय। शि॒क्षि॒तौ। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। वी॒ता॒म्। यज॑ ॥१७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:17


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जैसे (दैव्या) उत्तम गुणों में प्रसिद्ध (होतारा) जगत् के धर्त्ता (देवा) सुख देने हारे वायु और अग्नि (देवम्) दिव्यगुणयुक्त (इन्द्रम्) सूर्य को (अवर्द्धताम्) बढ़ावें, (हताघशंसौ) चोरों को मारने के हेतु हुए रोगों को (आ, अभार्ष्टाम्) अच्छे प्रकार नष्ट करें, (यजमानाय) कर्म में प्रवृत्त हुए जीव के लिये (शिक्षितौ) जताये हुए (वसुधेयस्य) सब ऐश्वर्य के आधार ईश्वर के (वसुवने) धनदान के स्थान जगत् में (वसु) धन और (वार्यणि) ग्रहण करने योग्य जलों को (वीताम्) व्याप्त होवें, वैसे आप (यज) यज्ञ कीजिए ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य सूर्यलोक के निमित्त वायु और बिजुली को जान और उपयोग में लाके धनों का संचय करें तो चोरों को मारनेवाले होवें ॥१७ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(देवा) सुखप्रदातारौ (दैव्या) देवेषु दिव्येषु गुणेषु भवौ (होतारा) धर्त्तारौ वायुपावकौ (देवम्) दिव्यगुणम् (इन्द्रम्) सूर्यम् (अवर्द्धताम्) वर्धयताम् (हताघशंसौ) हता अघशंसाः स्तेना याभ्यान्तौ (आ) (अभार्ष्टाम्) दहताम् (वसु) धनम् (वार्याणि) वर्त्तुमर्हाण्युदकानि (यजमानाय) (शिक्षितौ) विज्ञापितौ (वसुवने) (वसुधेयस्य) (वीताम्) व्याप्नुताम् (यज) ॥१७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथा दैव्या होतारा देवा वायुवह्नी इन्द्रं देवमवर्द्धतां हताघशंसौ रोगानाभार्ष्टां यजमानाय शिक्षितौ सन्तौ वसुधेयस्य वसुवने वसु वार्याणि च वीतां तथा यज ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि मनुष्या वायुविद्युतौ सूर्यनिमित्ते विज्ञायोपयुज्य धनानि सञ्चिनुयुस्तर्हि स्तेननाशकाः स्युः ॥१७ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे सूर्याचे कारण असलेला वायू आणि विद्युत यांना जाणतात व त्यांचा उपयोग करून धन कमावितात अशी माणसे (रोगरूपी) चोरांनाही मारू शकतात.